हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम भले ही अरब देश में पैदा हुए थे लेकिन जिस नूर (प्रकाश) से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उनका निर्माण किया था उस नूर को आदम अलौहिससलाम (जिन्हें काफी समाताओं के आधार पर भगवान शिव कहा जाता है।) ने अपने ललाट (माथे) में अमानत के तौर पर ले कर आए थे। सनातन धर्म और इस्लाम धर्म का तुल्यात्मक अध्यन और शोध करने वाले विद्वानों का कहना है कि भगवान् शिव के माथे पर जो चंद्रमा है, हो सकता है वह उसी नूर (प्रकाश) का सूचक हो जिससे आखरी नबी अर्थात अंतिम अवतार हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम निर्माण किया गया था । सपष्ट रहे कि चाँद इस्लाम धर्म का प्रतीक है और इस्लाम धर्म में चन्द्रमा का बहुत महत्त्व है। इस्लामिक कैलेंडर में हर महीने की पहली तारिख का निर्धारण भी चाँद निकलने के बाद ही होता है । भगवान शिव के गर्दन में जो सांप लिपटा हुआ रहता है यह वही शैतान है जिस ने सांप का वेश धारण कर के जन्नत में प्रवेश किया था और दादी हैव्वा को गेहूं का फल खाने के लिए बहकाया था और दादी हौव्वा ने दादा आदम को वह फल खाने के लिए विवश किया था, जिसकी वजह से दोनों को स्वर्ग से निकल कर धरती पर भेज दिया गया था । हो सकता है आदम अलैहिस्सलाम (भगवान शिव) ने सांप को अपने गले में पकड़ कर डाललिया हो ताकि वह फिर कभी स्वर्ग में प्रवेश करने की चेष्टा न करे । भगवान शिव के हाथ में जो त्रिशूल है वह अपार शक्ति का प्रतीक है । त्रिशूल को ध्यान से देखने पर अरबी भाषा में अल्लाह लिखा हुआ मालूम होता है । अल्लाह इस्लाम धर्म में सर्व शक्तिमान इश्वर को कहते हैं जो तमाम शक्ति का केंद्र बिंदु है । इस अध्यन से स्पष्ट हो जाता है कि आदम अलैहिस्ससलाम अर्थात भगवान शिव जिन्हें इस्लाम के अनुसार सर्वप्रथम धरती पर भेजा गया, प्रथम पैग़म्बर माना जाता है । उनके सभी प्रतीकों चाँद , त्रिशूल और सांप को इस्लाम ने ज्यों का त्यों अपना लिया ।
यह भी सपष्ट है कि आदम अलैहिस्ससलाम को स्वर्ग से निकाल कर जिस धरती पर उतरा गया था वह पावन धरती भरत की थी । स्वर्ग की खुशबू वह अपने साथ भारत की धरती पर लाये थे, साथ ही मोहम्मद का नूर अपने माथे में अमानत के रूप में लाये थे जिससे प्रमाणित होता है कि मोहम्मद सल्लाहो वलैहे वसल्लम की आरंभिक उपस्थिति भारत की ही पवित्र धरती पर हुई थी और प्रथम ईश्वरीय आदेश (वही) भारत की ही धरती पर जारी हुआ था । यही कारण है कि मोहम्मद सल्लाहु वालिहे को भारत कि धरती से)रब्बानी खुशबू)दिव्य खुशबू आती थी और इसीलिए उनके दामाद हज़रत-ए-अली ने कहा था कि भारत कि धरती की हवा सब से पवित्र हवा है ।
प्रसिद्ध इतिहासकार और आलिम-ए-दीन सैयद शाहबुद्दीन अब्दुर्रहमान और डॉक्टर सैयद महमूद ने भी लिखा है कि हज़रत मोहम्मद ने फ़रमाया कि मुझे भारत से रब्बानी खुशबू अर्थात दिव्य सुगंध आती है और मुहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के दामाद हज़रत अली ने कहा कि यह )भारत( सबसे पवित्र और खुशबूदार स्थान हैक्योंकि यहां हज़रत आदम अर्थात भगवान शिव को स्वर्ग से धरती पर उतारा गया जिस के कारण यहां के पेड़ों में स्वर्ग की खुशबू का असर है। इन लोगों का मानना है कि रब्बानी )दिव्य(खुशबू और स्वर्ग की खुशबू का अर्थ यह है कि यहां कोई स्वर्गीय किताब(अर्थात् पवित्र वेद)जरूर उतरी है । अल्लामा इकबाल ने भी कहा है:
हिंद ही बुनियाद है उसकी न फारस है न शाम
वह्दत की लै सुनी थी दुनिया ने जिस मकाँ से
मीर-ए-अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वह है
(बुनियाद=आधार, वह्दत=एकता, मीर-ए-अरब=हज़रत मोहम्मद, (
ऋग्वेद में नराशन सूक्त में नराशंस नमक एक व्यक्ति की चर्चा ३१ बार की गई है । इस व्यक्ति का सम्बन्ध किसी इन्सान से नहीं है बल्कि देवता से है । ऋग्वेद में नराशंस के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा गया है उसका अधिकतर भाग पैग़म्बर हज़रात मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम की जीवनी से मेल खाता है । संस्कृत में नर का अर्थ ‘इन्सान’ और अश्नस का अर्थ ‘प्रशंसा किया हुआ’है । ऋग्वेद के सायण भाष्य में ऋग्वेद संहिता मंडल ५ , सूक्त ५ , मंत्र २ के व्याख्या में नराशंस शब्द का अनुवाद “प्रशंसा किया हुआ व्यक्ति” लिखा हुआ है । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी ऋग्वेद हिंदी भाष्य के पृष्ट संख्या २५ पर इस शब्द का अनुवाद “प्रशंसा किया हुआ व्यक्ति ही किया है ।
प्रोफेसर पंडित वेद प्रकाश शर्मा ने भी अपने शोध में नराशंस और मोहम्मद सल्लल्लाहु वालैहे वसल्लम में जो समानताएं पाई जाती हैं उसके आधार पर मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम को भगवान का अवतार ही माना है । इनकी पुस्तक “कल्कि अवतार” अर्थात ‘ब्रह्मांड का मार्गदर्शक’ को सन्दर्भ के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है । अतः इस्लाम धर्म, सनातन धर्म ही का ही परिमार्जित और विकसित रूप है
अरब देश और भारत के संबंध मोहम्मद सल्लल्लाहु वालैहे वसल्लम के समय से ही था । मोहम्मद साहब भारत के लोगों को और भारत के औशधीय सामग्रियों को बहुत महत्त्व देते थे । इस सम्बन्ध में सही बुख़ारी शरीफ़ खंड ७, पुस्तक ७१ और संख्या ५९६ में उम्मे कैस बिंत मिहसान नें कहा है कि उन्होंने मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम को भारतीय धूप, (जिस को पूजा करते समय वातावरण को शुद्ध करने के लिए जलाया जाता है) से गले और आँत की बीमारियों का इलाज करने की बात सुनी है । मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम ने कहा है कि जलते हुए धूप के धोएँ से गले की बीमारी ख़त्म होजाती है और धूप की गोली बना मुँह में रखने से आँतों की बीमारी दूर हो जाती है।
इसी तरह की एक और घटना का चर्चा इस्लामिक पुस्तकों में मिलती है । वह ये कि मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के समय भरत के तटीय क्षेत्र मालाबार के चक्रवर्ती सम्राट फ़रमास्य मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम से मिलने के लिए अरब गए हुए थे। उन्हों ने अपने आदमियों के द्वारा मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम को भेंट में एक बर्तन भेजा था । जब मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम ने इस बरतन को खोल कर देखा तो उसमें भारतीय अदरक थी । मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम ने उस अदरक को तोड़ तोड़ कर अपने साथ बैठे हुए सभी लोगों को ऐसे खिलाया जैसे यह किसी मंदिर का प्रसाद हो ।
इन दो नों घटनाओं से मालूम होता है कि पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम का सम्बन्ध भारत से अटूट था ।
इस्लामी इतिहास के अनुसार हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शादी शाहईरानकीराजकुमारीशहरबानोसेहुईथी, जबकि दूसरी राजकुमारी मेहर बानो, जिसका भारतीयनामचंद्रलेखाथा, का विवाह भारत में राजा चंद्रगुप्त विक्रमा दित्य (द्वितीय) से हुई थी। इसलिएहज़रतइमामहुसैनअलैहिस्सलामऔरराजाविक्रमादित्य (द्वितीय) रिश्तेदारथे।यहीकारण हैकिकर्बलाकेमैदानमेंजबयज़ीदकीसेनानेइमामहुसैनअलैहिस्सलामकोकैदकर लियाथातबउन्होंनेयज़ीदसेपेशकशकीथीकिअगरउन्हेंसुरक्षित रास्ता दे दिया जाए तो वह अरबदेशछोड़करभारतचलेजाएंगेलेकिनयज़ीदनेउनकीपेशकशठुकरादीऔरकरबलाकेमैदानमेंयजीदकेसेनानेचरोंओरसेहज़रतइमामहुसैनअलैहिस्सलामकोघेरलियाथातोमोसिबतकीघड़ीमेंउन्होंनेमददकेलिएभारतमेंराजाविक्रमादित्यद्वितीय को संदेश भेजा था। इसलिएउनकीमददकेलिएभारतसेराजाविक्रमादित्यद्वितीयकीफौज, जिसे हुसैनी सेना भी कहा जाताहैवहाँगईथी, लेकिन करबला के मैदान में पहुँचने से पहले ही हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलामकोयज़ीदकीसेनानेशहीदकरदियाथा।हुसैनीसेना यानी विक्रमादित्य द्वितीय की सेनाकेकुछसैनिकोंकोभीशहीदकरदियागयाथा।
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के सनातन धर्म और आप के नवासे हज़रत इमाम अलैहिस्सलाम के भारत से जो रिश्तों थे भारत के लिए जो सम्मान था, साथ ही हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के दामाद हज़रत अली के भारत की हवाओं के सम्बन्ध में जो वक्तव्य दिया था उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत की धरती मुसलमानों के लिए पूजा के योग्य है और इस्लाम सनातन धर्म का ही परिमार्जित और विकसित रूप है । इसलिए मुसलमानों को सनातन धर्म और भारत कीपवित्रधरतीपरगर्वमहसूसकरनाचाहिएकिवहउसधर्मकोमानतेहैंजिसकाश्रोतसनातनधर्महैऔरसनातनधर्मभारतकिधरतीसेइस्लामधर्मकाअटूटसम्बन्धहैअतःअपनेदेशकेप्रतिमुसलमानोंकोपूर्णरूपसेसमर्पितहोनाचाहिए । पैग़म्बर-ए-इस्लाम मोहम्मद सल्लल्लाहु वलैहे वसल्लम के जन्म दिन पर यही सच्ची श्रधांजलि हो गी ।