वामपंथियों और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने आर एस एस के विरुद्ध इतना गलत प्रचार प्रसार किया है और गलतफहमियां फैलाने की कोशिश की है कि संघ हमेशा चर्चा में बना रहा और आज भी इसके बारे में इतनी बातें होती रहती हैं कि संघ के बारे में अधिकांश लोग कुछ भी नहीं जानते हुए भी यह समझते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं। उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो संघ संबंधित सकारात्मक राय रखते हैं जबकि अधिकांश लोग नकारात्मक सोच पैदा कर लेते हैं । अतः संघ के बारे में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की सोच रखने वालों को जान लेना आवश्यक है कि संघ या आर एस एस क्या है? संघ का दृष्टिकोण क्या है? क्या यह सचमुच अल्पसंख्यक समुदाय का दुश्मन संगठन है, जो अल्पसंख्यक संप्रदाय के लोगों को देश से बाहर निकालना चाहता है या उनके अस्तित्व का अंत करना चाहता है? ऐसे सवाल अधिकतर लोगों के मन में आते रहते हैं। इस तरह के प्रश्नों के उत्तर संघ ने न कभी दिये हैं और न ऐसे अर्थहीन प्रश्न का उत्तर देना आवश्यक समझा है, लेकिन अब समय आ गया है कि लोगो को संघ या आर. एस. एस. की वास्तविकता बताई जाए ताकि लोगों के मन में जो गलत धारणाएं उत्पन्न हो गईं हैं उन्हें दूर किया जा सके ।
आर.एस.एस. वास्तव में एक वैश्विक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है जिसकी देश भर में 40 हजार से अधिक शाखाएं लगती हैं। भारत से बाहर भी कई देशों में हजारों शाखाएं लगती हैं। संघ अपने संगठन में लोगों को शामिल करने के लिए पहले उनके व्यक्तित्व का निर्माण करता है, इनके अंदर समाज के लिए देशभक्ति की भावना जगाता है , उनके मन में निःस्वार्थ भाव से काम करने की भावना उत्पन्न करता है, उन्हें संगठित करने का काम भी करता है। संघ का सिद्धांत यह है कि समाज में कोई संगठन न बनाकर सभी समाज को ही संगठित कर दिया जाए ताकि भारत की अखंडता बनी रहे और उसकी शक्ति के सामने दुश्मन घुटने टेकने पर विवश हो जाएँ।
संघ का उद्देश्य अपने देश को दुनिया का सर्वोत्तम देश बनाना है, जिसके लिए आवश्यक है कि हमारा देश ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ट हो, साथ ही संघ यह भी चाहता है कि भारत आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और शक्तिशाली हो। संघ कहता है कि भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है और न किसी देश का शोषण किया है, इसलिए हमारे देश पर भी न कोई आक्रमण करे और ना कोई देश का शोषण करे। परन्तु यदि कोई देश भारत पर आक्रमण करने की कोशिश करे तो भारत उस देश की ईंट से ईंट बजा दे । इसके लिए आवश्यक है कि भारत इतना समृद्ध, सशक्त और संगठित रहे कि कोई हमारे देश कि तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी न कर सके। संघ का मानना है कि भारत भौगोलिक दृष्टिकोण से केवल एक देश नहीं है, बल्कि इसके अन्दर एक आत्मा भी है, जिसके जीवन की एक विशिष्ट प्राचीन दृष्टिकोण और सोच है। उसके जीवन की यह दृष्टि अटूट और बहुआयामी है। इसलिए संघ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहता है, जिससे भारत के जीवन का प्रकाश प्रतिबिंबित हो, भारत की मूल आत्मा और मूल पहचान पर टिप्पणी करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “अध्यात्म” ही भारत की मूल पहचान है, यही भारत की मूल आत्मा है। भारत की यह आध्यात्मिकता यहाँ के समाजिक जीवन के हर अंग में दिखाई दे, संघ ऐसे ही बहुआयामी उन्नत समाज का निर्माण करना चाहता है,क्योंकि किसी भी देश का नेतृत्व, उस देश के समाज की श्रेष्ठता पर निर्भर करता है। समाज अगर आपस में विभाजित रहे, लोभी हो , भ्रष्ट हो, कामचोर हो, तो देश का ना कभी विकास ही होगा और ना ही वह समृद्ध बनेगा । परन्तु अगर हमारे समाज में निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले, चरित्रवान, आपस में प्यार से रहने वाले, और अनुशासित व्यक्ति होंगे तो हमारा देश आगे बढ़ेगा, सशक्त और समृद्ध होगा। इसलिए संघ ने ऐसे समाज के निर्माण का दायित्व अपने हाथों में ले लिया है ताकि सभी लोगों को समाज के प्रति संवेदनशील और राष्ट्र के प्रति जागरूक और सक्रिय करके उनके व्यक्तित्व का निर्माण कर सके और उन्हें संगठित कर सके।
संघ का यह मानना है कि समाज के निर्माण और समाज को संगठित करने का जो काम उसने अपने हाथ में लिया है, वह सत्ता की शक्ति द्वारा संभव नहीं है, इसलिए राजनीति में पहले से सक्रिय, संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने राजनीति से अलग होकर संघ का काम शुरू किया था। संघ का मानना है कि देशभक्ति और सामाजिक सरोकार समाज में पैदा करने के लिए और इसको संगठित सार्वजनिक शक्ति द्वारा सत्तारूढ़ सरकार पर लगाम कसने का काम किया जा सकता है। इसलिए संघ चाहता है कि जागृत और संगठित सार्वजनिक बल द्वारा लगाम कसने और नैतिकता पर आधारित स्वच्छ राजनीति देश में चले।
ज्ञात रहे कि संघ में हिंदू शब्द का उपयोग पूजा, पंथ, धर्म के लिए नहीं होता है। यह भी स्पष्ट रहे कि संघ कोई धार्मिक संगठन नहीं है। यह केवल हिन्दू जीवन दृष्टि है, एक View of life है। हिंदू शब्द का उपयोग संघ इसी अर्थ से करता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि Hinduism is not a religion but a way of life। उदाहरण के लिए सत्य अर्थात भगवान एक ही है परंतु इस को पुकारने के नाम हजारों हो सकते हैं। भगवान तक पहुँचने के रास्ते भी कई हो सकते हैं। सूफियों का मानना है कि अल्लाह सभी वस्तुओं में विधमान है, संघ इसे हिंदू जीवन का दृष्टिकोण मानता है और इस पर विश्वास रखता है। संघ कहता है कि यही भारतीय जीवन दृष्टि है। संघ कहता है कि एक ही तथ्य विभिन्न रूपों में व्यक्त हुआ है। इसलिए प्रत्येक वस्तु में एक ही तथ्य मौजूद है। इसलिए, विविधता में एकता (Unity in Diversity), भारत की यह जीवन दृष्टि हिन्दू जीवन दृष्टि भी है। संघ के इन विचारों से किसी भी मुसलमान को न डरने की जरूरत है और न घबराने की आवश्यकता और न इससे किसी को मतभेद होना चाहिए क्योंकि कुरान और सूफी संतों की शिक्षाओं ने हमें यही सब बातें सिखाई हैं। संघ कहता है कि उसके जीवन के दृष्टिकोण को मानने वाला, भारत के इतिहास को अपना मानने वाला, यहाँ जो जीवन मूल्य विकसित हुआ है, उन मूल्यों को अपने आचरण से समाज में प्रतिष्ठित करने वाला और उनके जीवन मूल्यों की रक्षा करने वालों और बलिदान देने वाले को अपना आदर्श मानने वाला हर व्यक्ति हिंदू है, चाहे उसका धर्म या पूजा विधि जो भी हो। संघ के इन विचारों से किसी भी धर्म के मानने वाले को मतभेद नहीं होना चाहिए क्यों कि सभी धर्मों के अनुसार यही सत्य है इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।
संघ का मानना है कि भारत में रहने वाले ईसाई या मुसलमान हिंदुस्तान के बाहर से नहीं आये हैं , वह सब यहीं के मूल वासी हैं। हमारे सभी के पूर्वज एक ही हैं । मुसलमान भी यह मानते हैं कि हम बाहर से नहीं आये हैं, हमारी जड़ें यहीं की हैं। संघ आगे कहता है कि किसी कारणवश धर्म बदलने से जीवन का दृष्टिकोण नहीं बदलता अतः इन सब की जीवनदृष्टि यानी हिंदू दृष्टि ही है। संघ का यह भी कहना है जो शत प्रतिशत सच है ,इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि इस्लाम को पूरी दुनिया में फैलाया गया है इससे पहले वे किसी दूसरे धर्म को मानते थे,जिन्होंने अपना पुराना धर्म त्याग कर इस्लाम धर्म को अपना लिया था, इसलिए इनकी जड़ें भारत में बहुत गहरी हैं । संघ कहता कि हिंदू होने के नाते कोई भी व्यक्ति संघ में आ सकता है। संघ यह भी दावा करता है कि वर्तमान में अनगिनत मुसलमान आर एस एस में सम्मिलित हैं। अगर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सदस्यों को भी शामिल कर लिया जाए तो आर एस एस में मुसलमानों की संख्या लगभग नौ लाख से अधिक है। आगे भी लोग इसमें शामिल होते रहेंगे इसमें मुसलमानों की संख्या बढ़ती रहेगी। संघ कहता है कि किसी भी व्यक्ति या समाज को धर्म के आधार पर कोई भेदभाव या कोई विशेष सुविधा नहीं है। संघ में आए सभी लोग हिंदू होने के नाते संघ के सभी कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं। इस वाक्य से डरने कि आवश्यकता नहीं है हिंदू शब्द की व्याख्या पहले की जा चुकी है। संघ का मानना है कि “हिन्द्वाः सहोदरःसर्वे” यानी सभी हिंदू एक ही माँ के पुत्र हैं। इसलिए सभी हिंदू भाई भाई हैं। न कोई बड़ा और न कोई छोटा है। (उल्लेखनीय है कि संघ के पास सभी भारतीय हिंदू हैं) संघ की सदैव यही सोच रही है और संघ का व्यवहार भी ऐसा ही रहा है।
पुणे के मशहूर “वसंत” सांस्कृतिक श्रृंखला में संघ के तीसरे सर संघ चालक, माननीय बाला साहेब देवरस जी ने अपने भाषण में कहा था कि “अगर छुआछूत गलत नहीं है तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है और इसे जड़ से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए।’’ संघ सभी समाज को संगठित करने की बात करता है तो समाज के सभी वर्ग के लोगों को संघ में आना अनिवार्य है। ऐसी संघ की कोशिश भी रही है और ऐसे लोग संघ के आरम्भ से ही संघ में आ रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि संघ छुआछूत या जाति-धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करता है। अतः मुसलमानों से नफरत या भेदभाव करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
इसलिए मुस्लिम समाज के हर व्यक्ति को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि आर एस एस का उद्देश्य सभी समाज को संगठित करना है, हिंदू जीवन दर्शन का प्रकाश समाज के चौतरफा विकास के लिए है। आर एस एस का काम किसी विशेष धर्म के खिलाफ नहीं है। आर एस एस ऐसे किसी भी प्रकार की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का सदा विरोध करता आया है जो इस बात का प्रमाण भी है कि संघ राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत एक राष्ट्रवादी संगठन भी है। ज्ञात रहे कि समाज में उपस्थित वामपंथी और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लेखक,संघ के विरुद्ध जो निरंतर झूठा और गलत प्रचार करते आए हैं और संघ को मुस्लिम और ईसाई विरोधी बताने की कोशिश करते हैं और धर्म के आधार पर मुस्लिम और ईसाई के साथ भेदभाव करने की संघ की नीति का गलत प्रचार प्रसार करते हैं और उसके समर्थन में दूसरे सर संघ चालक, श्री गुरुजी की लिखी पुस्तक “we are our nationhood defined” का संदर्भ देते हैं,जबकि यह पुस्तक संघ का साहित्य नहीं है। जिस समय यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी उस समय श्री गुरु जी संघ के सर संघ चालक नहीं थे और न वह संघ के अधिकारी थे। भारत में रहने वाले मुस्लिम भाइयों के बारे में संघ की सोच क्या है, यह श्री गुरु जी ने विख्यात पत्रकार श्री सैफुद्दीन जिलानी को दिये गये एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया था।
श्री गुरूजी ने भारत के महान लोगों को भारतीय मुसलमानों द्वारा आदर्श न माने जाने को लेकर अपने साक्षात्कार में कहा था कि “पाकिस्तान ने पाणिनी की पांच हज़ारवीं जयंती मनाई। इसकी वजह यह है कि जो भाग पाकिस्तान के नाम से पहचाना जाता है, वहीं पाणिनी का जन्म हुआ था। अगर पाकिस्तान के लोग गर्व से कह सकते हैं कि पाणिनी उनके पूर्वजों में से एक हैं, तो भारतीय मुसलमान (मै उन्हें हिंदू-मुसलमान कहता हूँ) पाणिनी, व्यास, वाल्मीकि, राम, कृष्ण आदि को गर्व से अपना महान पूर्वज क्यों नहीं मानते? हिंदुओं में ऐसे कई लोग हैं जो राम, कृष्ण आदि को भगवान का अवतार नहीं मानते। फिर भी वह उन्हें महापुरुष मानते हैं, आदर्श मानते हैं। इसलिए मुसलमान भी अगर उन्हें अवतार न मानें, तो कुछ नहीं बिगड़ने वाला मगर क्या उन्हें राष्ट्रीय व्यक्ति नहीं माना जाना चाहिए?”
माननीय श्री गुरु जी की शिकायत सत प्रतिशत सही है। अल्लामा इकबाल, सूफी संत, और कई धार्मिक व्यक्तियों ने खुले शब्दों में कहा है कि श्री राम, श्री कृष्ण और ऐसे कई दूसरे धार्मिक व्यक्तियों को बुरा नहीं कहो, संभव है, वह भी नबियों में से हों जिसकी चर्चा कुरान में नहीं हुई है । चौदह हज़ार नबियों के दुनिया में आने के बारे में कुरान में कहा गया है, उनमें कुछ ही का नाम कुरान में लिखा हुआ है । संभव है श्री राम, श्री कृष्ण और दूसरी धार्मिक हस्तियां नबी हों। तो श्री गुरु जी कि यह शिकायत सही नहीं है कि “ भारतीय मुसलमान (मै उन्हें हिंदू-मुसलमान कहता हूँ) पाणिनी, व्यास, वाल्मीकि, राम, कृष्ण आदि महा पुरुषों को अपना पूर्वज क्यों नहीं मानते?”
माननीय श्री गुरुजी ने दोनों धर्मों के महत्व और उपयोगिता को स्वीकार करते हुए यह भी कहा है कि “ हमारे धर्म और दर्शन की शिक्षा के अनुसार हिंदू और मुसलमान एक ही जैसे हैं। ऐसी बात नहीं है कि ईश्वरीय सत्य का साक्षात्कार केवल हिन्दू ही कर सकते हैं। अपने अपने धर्म-मत के अनुसार कोई भी साक्षात्कार कर सकता है”। श्री गुरु जी ने आगे कहा है कि “ मै समझता हूं कि अन्य लोगों की तरह मुसलमानों की भी वैध माँगें पूरी की जानी चाहिए, लेकिन जब चाहें तब विभिन्न सुविधाओं और रियायतों की मांगें करते रहना बिल्कुल उचित नहीं। मैंने सुना है कि हर राज्य में एक छोटा पाकिस्तान की मांग उठाई गई है, जैसा कि अखबारों में प्रकाशित हुआ है। एक मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष ने तो लाल किले पर अपना झंडा लहराने की योजना की बात की है। इन महाशय ने अब तक इसका खंडन नहीं किया है। ऐसी बातों से समग्र देश का विचार करने वालों का संतप्त होना स्वाभाविक है”।
माननीय श्री गुरु जी के विचारों से स्पष्ट है कि संघ मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, Appeasement policy के खिलाफ है,जो सही है । कांग्रेस सरकार ने इस नीति को अपना कर मुसलमानों का भारी नुकसान किया है । इसी नीति के कारण देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या मुसलमानों के खिलाफ हो गई। इस नीति से मुसलमानों को कभी कोई लाभ नहीं पहुंचा सिवाय नुकसान के । श्री गुरु जी के बयान से पता चलता है कि संघ मुसलमानों के खिलाफ नहीं, सिर्फ चरमपंथी संस्थाओं और कट्टर बयानों के खिलाफ है जिससे भारत की एकता और अखंडता प्रभावित होती है।
आर एस एस अगर मुसलमानों का दुश्मन या उसके विरुद्ध होता तो पूर्व सर संघ चालक माननीय श्री के. सुदर्शन जी ने मुसलमानों के कल्याण और उनकी शांति और सुरक्षा, भाईचारे व मौहब्बत से परिपूर्ण चेहरा दुनिया के सामने पेश करने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन न किया होता और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी को इसका प्रमुख न बनाया गया होता। माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी पिछले पंद्रह-सोलह वर्षों में विभिन्न समुदायों के लाखों मुस्लिम बुद्धिजीवियों, धार्मिक नेताओं, प्रोफेसरों और छात्रों से मिल चुके हैं और मुसलमानों के मुद्दों से संबंधित सैकड़ों कार्यक्रमों में वक्ता की हैसियत से भाग ले चुके हैं।
इन सभी व्याख्यानों को एडिट करके प्रकाशित किया जाए तो हज़ारों पृष्ठों पर आधारित एक पुस्तक बन जाएगी। उनके व्याख्यान का अगर ध्यान से अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि वह एक सूफी विचारों वाले व्यक्ति हैं। उन्हें सिर्फ मानवता से ही नहीं बल्कि समस्त प्राणियों और ब्रह्मांड से भी प्यार है। वह सभी प्राणियों और ब्रह्मांड का भला चाहते हैं। इसीलिए वह आतंक मुक्त और प्रदूषण मुक्त संसार की कामना करते हैं लेकिन मुट्ठी भर मुस्लिम आतंकवादियों और विध्वंसक शक्तियों के कारण समस्त मुस्लिम समाज पूरी दुनिया में बदनाम हो रहा है। इन्हीं आतंकियों की वजह से इस्लाम धर्म का नाम बदनाम हो रहा है इसलिए उन्हें मुसलमानों की चिंता है। वह चाहते हैं कि मुस्लिम सही रास्ते पर चलें पढ़े लिखें, नेक इंसान बनें, समृद्ध बनें, रचनात्मक कार्य करें , अपने वतन से प्यार, अपने आपको पूर्ण रूप से भारतीय समझें क्योंकि वह सही अर्थों में भारतीय ही हैं। वे चाहते हैं कि भारत को मजबूत समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ । हाल ही में श्री इन्द्रेश कुमार जी का एक व्याख्यान दिल्ली विश्वविद्यालय में “ सशक्त और समृद्ध भारत निर्माण में मुस्लिम बुद्धिजीवियों कि भागीदारी” जो अब पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका है, इसे आप पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि श्री इंद्रेश कुमार जी सही मायने में क्या हैं? इस पुस्तक को पढ़ कर आप को इस बात का भी अनुमान होगा कि आर एस एस मुसलमानों का दुश्मन संगठन है या दोस्त संगठन? किसी व्यक्ति या संगठन के बारे में किसी भी तरह की राय बनाने से पहले उसे अच्छी तरह जान लेना चाहिए, समझ लेना चाहिए, परख लेना चाहए.आँखें बंद करके मीडिया या किसी राजनीतिक पार्टी या स्वार्थी संगठन के प्रोपगंडे पर विश्वास करके अपनी राय देना और उसके विरुद्ध बोलते रहना बिल्कुल सही नहीं है।
हाल ही में आर एस एस और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बुद्धिजीवी सेल और “भारतीय मुस्लिम बुद्धिजीवी मंच” ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ एक चर्चा का आयोजन दिल्ली में किया था, जिसमें समस्त भारत के अनेक स्थानों से अलग अलग पंथ व समूह से संबंध रखने वाले 116 अग्रणी हस्तियों ने भाग लिया। चर्चा में आर एस एस के तीन विचारकों, श्री इंद्रेश कुमारजी, डाक्टर श्री गोपाल कृष्ण जी और श्री दत्ता त्रोय होसाबले जी ने मुसलमानों के बारे में संघ के विचारों को खुलकर व्यक्त किया और दो टूक शब्दों में कहा कि संघ मुस्लिम विरोधी न था, न है और न रहेगा।
वरिष्ठ आर एस एस विचारक श्री इंद्रेश कुमार जी ने अपने उद्घाटन भाषण में 2002 से अब तक मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ अपने व्यक्तिगत और सामूहिक वार्ता परिणाम और प्रभाव के बारे में बात करते हुए कहा कि इन वार्ताओं ने अब एक आंदोलन का रूप धारण कर लिया है, जिसका एक मात्र उद्देश्य मुसलमानों को मुख्य धारा में शामिल करना है। भारत की शांतिप्रिय और वैश्विक भाईचारे की चर्चा करते हुए श्री इंद्रेश कुमार जी ने पैग़म्बर-ए- इस्लाम, मोहम्मद ﷺकी उस घटना की याद दिलाई, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब सारी दुनिया में युद्ध और अशांति फैल जाएगी, तो शांति की ठंडी हवा पूरब के एक देश भारत से आएगी। “देशभक्ति आधा ईमान” का हवाला देते हुए उन्होंने विध्वंसकारी शक्तियों के बहकावे में आकर भटके हुए मुसलमानों से अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा दी । आगे अपनी बात रखते हुए इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि भारत की मुख्यधारा, बहु सांस्कृतिक है और यह देश की प्रकृति में शामिल है। उन्होंने देश की सभ्यता और संस्कृति को उसके प्राचीन इतिहास से जोड़ते हुए कहा कि जिस तरह से यह देश सदियों पुराना है इसी तरह उसकी संस्कृति भी सदियों पुरानी है । माननीय इन्द्रेश कुमार जी ने जैश-ए- मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों के नामों की शाब्दिक व्याख्या करते हुए धार्मिक संदर्भ में उनकी मानवता को शर्मसार करने वाले और विध्वंसक कार्यों पर उनकी निंदा की। सच बात कहने का हौसला रखने और साहस पैदा करने की हिदायत देते हुए उन्होंने इस सच्चाई को दोहराया कि सच कड़वा ज़रूर होता है लेकिन सफलता इसी में छिपी है।
आर एस एस विचारक माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी के बयान से पता चलता है कि वह मुस्लिम समाज में सुधार चाहते हैं और इस्लाम के उस चेहरे को दुनिया के सामने लाने के इच्छुक हैं जिसमें कहा गया है कि देशभक्ति आधा ईमान है और इस्लाम प्रेम और भाईचारा सिखाने वाला और शांति स्थापित करने वाला धर्म है। वे नहीं चाहते हैं कि हिंसक समूहों के नाम जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए- तैयबा जैसे नामों पर रखे जाएँ जो इस्लाम में अत्यंत प्रिय नाम हैं। वे चाहते हैं कि मुस्लिम युवक खुद को आतंकवादी समूहों से दूर रखें ताकि इस्लाम का नाम दुनिया भर में बदनाम न हो ।माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी के बयानों से स्पष्ट है कि उन्हें मुस्लिम समाज से नफरत नहीं बल्कि प्यार और सहानुभूति है।
इसी सम्मेलन में आरएसएस के सह सरकारवाह, डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने अपने भाषण में कहा कि आर एस एस के बारे में मीडिया द्वारा बहुत सी गलतफहमियां फैलाई गई हैं, खास कर उसके मुस्लिम विरोधी होने का खूब प्रचार किया गया जिस पर यद्यपि संघ ने खुलकर बहुत कुछ नहीं कहा लेकिन यह सरासर गलत प्रचार है कि संघ मुस्लिम विरोधी है। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वह नज़दीक से संघ की विचार धारा को समझें। मीडिया की बताई हुई या किसी और से सुनी हुई बातों पर भरोसा न करें। उन्होंने यह भी कहा कि संघ यह मानता है कि भारतीय मुसलमानों की बहुत बड़ी संख्या भारत के मूल निवासियों की है जिनके पूर्वज इसी धरती पर पैदा हुए और यहीं दफन भी हुए। आगे कहा कि बहुत कम संख्या ऐसे मुसलमानों की है जिनके पूर्वज बाहर से आए हैं, लेकिन जो बाहर से आए हैं उन्होंने भी भारत के सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को स्वीकार कर लिया और उसमें रच बस गए हैं । धार्मिक सिद्धांतों पर बात करते हुए माननीय श्री कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि यधपि हर धर्म का रास्ता और तरीका अलग है लेकिन सभी का गंतव्य एक है और हर धर्म के भगवान तक पहुंचने का एक ही स्रोत है । भारत की प्राचीन शिक्षा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम भारतीय सारे संसार को एक परिवार मानते हैं, जिसे उन्हों ने वेदों और पुराणों के श्लोकों के उदहारण से प्रमाणित किया। भारतीय मुसलमानों ने भी उन्हीं शिक्षाओं को गले लगाया और अमीर ख़ुसरो, बाबा फरीद शकर गंज, मलिक मुहम्मद जायसी, बुल्ले शाह, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना , असदउल्ला खां गालिब, रफीक ज़करिया, बिस्मिल्लाह खान और पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अबुल कलाम जैसे शांति के प्रतीक महापुरुषों का विशेष रूप से उल्लेख किया । डाक्टर गोपाल कृष्ण जी ने कहा कि हाँ, कुछ ऐसे लोग जरूर हैं जो भारतीय सोच और संस्कृति का यह रहस्य नहीं समझ सके लेकिन अधिक संख्या उन मुसलमानों की है जो भारतीय संस्कृति के इन मूल्यों को अपनाये हुए हैं।
इस देश की मुख्यधारा में मुसलमानों की भागीदारी पर जोर देते हुए उन्होंने पूछा कि क्या हिंदू और मुसलमान साथ में कदम से कदम मिलाकर एक साथ नहीं चल सकते? और स्पष्ट शब्दों में कहा कि संघ, मुस्लिम विरोधी बिल्कुल नहीं है। आगे उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आरएसएस और मुस्लिम समाज हर समस्या पर खुलकर विचार करें क्योंकि समस्याओं का समाधान तभी संभव है। उन्होंने मुस्लिम समाज की शिक्षा पिछड़ेपन गरीबी और बेरोजगारी पर बात करते हुए कहा कि देश में छात्रों को आर्थिक आधार पर छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए और इसमें जाति या धर्म की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक गरीब और जरूरतमंद छात्रों को शिक्षा सहायता मिल सके। उन्होंने शिक्षा सहिष्णुता पर बात करते हुए बताया कि असम प्रदेश में संघ द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में हजारों मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं उन्होंने यह भी कहा कि संघ के स्कूलों में पढ़ने वाले उस मुस्लिम लड़के का भी उल्लेख किया जाना चाहिए जो सौ प्रतिशत नंबर प्राप्त कर मीडिया और समाचार पत्रों का शीर्षक बना।
आर एस एस के सह सर कारवाह, डॉक्टर कृष्ण गोपाल जी ने अपने समापन भाषण में चर्चा में शामिल लोगों से कहा कि चर्चा से कई समस्याओं के जानने और समझने की ओर अच्छी पहल हुई है साथ ही यह भी कहा कि अगर लोग संघ के बारे में और बात करते और संघ की खामियां बताते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। मुसलमानों से उन्होंने संघ के बारे में और अधिक जानने के लिए अनुरोध किया और सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करने की अपील की। कृष्ण गोपाल जी ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के घेरे से बाहर निकलने का भी लोगों से अनुरोध किया। मुसलमानों की गरीबी, शैक्षिक पिछड़ेपन और बेरोजगारी पर चिंता जताते हुए उन्होंने विवादित मानसिकता की खुले शब्दों में आलोचना की और कहा कि देश के 125 करोड़ नागरिक एक हैं, उनमें कोई भेद नहीं है। उन्होंने हर गरीब की वित्तीय सहयोग की बात की और कहा कि संघ के मन में मुसलमानों के खिलाफ न कोई भेद कभी था और न है। हिंदू समाज में सुधार पर बात करते हुए डॉक्टर कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि हम हिंदुओं में सुधार की पूरी कोशिश कर रहे हैं और मुसलमानों को भी सुधार की कोशिश करनी चाहिए और अच्छी बातें अपनाने से परहेज नहीं करना चाहिए।
माननीय डाक्टर श्री कृष्ण गोपाल जी के बयान से जाहिर हो रहा है कि संघ मुसलमानों का दुश्मन नहीं बल्कि दोस्ती का इच्छुक है, संघ मुसलमानों का भला चाहता है, बुरा नहीं। डॉक्टर कृष्ण गोपाल जी की हर बात तथ्य और सत्य पर आधारित है। अगर किसी को आपत्ति है तो साबित करे कि उनकी बात वास्तविकता पर आधारित नहीं है।
आर एस एस के दूसरे सहसरकार्यवाह, दत्तात्रोय होसाबले जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विभाजन के समय पाकिस्तान जाने का विकल्प मौजूद होने के बावजूद भारत के मुसलमानों ने इस देश को अपनी पसंद से चुना है तो उसका विशेष कारण यह है कि वे इस देश से प्यार करते हैं। उन्होंने इस बिंदु को सामने रखा कि हम हिंदू या मुसलमान, हिंदू या मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण हैं और यह कोई वैकल्पिक प्रक्रिया नहीं है। दत्तात्रोय जी ने यह भी कहा कि आर एस एस, हिंदू शब्द को किसी विशिष्ट धर्म के अर्थ में नहीं लेता है बल्कि उसे एक National identity के रूप में देखता है। उन्होंने संघ के उद्देश्यों पर बात करते हुए कहा कि संघ का उद्देश्य देश के कल्याण और मानवता की सेवा करना है।
मुस्लिम बुद्धिजीवियों की एक और बैठक 2 दिसंबर 2016 को दिल्ली में हुई थी जिसमें देश भर से आए मुस्लिम बुद्धिजीवियों की संख्या लगभग 160 थी। इस मीटिंग में आर एस एस वर्तमान सरसंघचालक माननीय श्री मोहन भागवत जी, माननीय डॉ. कृष्ण गोपाल जी और माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी ने शिरकत की थी। इस बैठक में सरसंघचालक माननीय श्री मोहन भागवत जी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए संघ के विचारों पर विस्तृत प्रकाश डाला और यह स्पष्ट किया कि संघ न कभी मुसलमानों के खिलाफ था और न आज है। उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सराहना की, कि यह संस्था हिंदुओं और मुसलमानों के दिलों में जो घृणा उत्पन्न हो गई है उसे दूर करने की कोशिश कर रही है साथ ही मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की वजह से भारत के मुस्लिम अब आर एस एस को समझने की कोशिश कर रहे हैं और मुसलमानों की बहुत बड़ी संख्या आर एस एस में शामिल हो रही है जो भारत के उज्जवल भविष्य के लिए शुभ संकेत है। माननीय श्री भागवत जी ने हिन्दुत्व, हिन्दू राष्ट्र और संघ की विचारधारा को परिभाषित किया, जिसका निष्कर्ष यह है कि संघ किसी का विरोध नहीं करता लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संघ एक हिंदू संगठन है जो हिंदुत्व के संवर्धन, प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए समर्पित है, क्योंकि हिंदुत्व ही भारत की वास्तविकता है। संघ का अपना कोई सिद्धांत नहीं है, जो भारतीयता है, जो भारत की आत्मा है, वही संघ की विचारधारा की वास्तविकता भी है। इसलिए जिन्हें अपनी भारतीयता पर गर्व है उन्हें संघ से जुड़ने और उसे जानने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि सभी मिलकर घृणा और हिंसा मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण करें । हमारा समाज यदि आदर्श और रचनात्मक होगा तब हम सब मिलकर एक मजबूत और सशक्त भारत का निर्माण कर सकेंगे ।
आर एस एस के सभी विचारकों और माननीय सर संघचालकों के साक्षात्कारों, बयानों और भाषणों का सार यही है कि आर एस एस मुसलमानों या किसी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ न कभी था और न अब है। संघ का उद्देश्य केवल यही है कि भारत के सभी समुदायों और धर्म के मानने वालों को भारत की संस्कृति के आधार पर एकजुट किया जाए और सपनों के भारत का गठन किया जाए जो किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है।
डॉ शेख़ अक़ील अहमद
निदेशक, राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
भारत सरकार